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समझौता कोई ऐसी हेय और निंदा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणत: हम लोग समझते है, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है। कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, यह जरूरी है कि वह आरंभ में असफल हो और अपनी लंबी जद्दोजहद के मध्यकाल में इस प्रकार के समझौते के जरिए कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाए, परंतु पहुंचते-पहुंचते अपनी ताकतों को इतना संगठित और दृढ़ कर लेती है और उसका दुश्मन पर आखिरी हमला इतना जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उस वक्त तक यह चाहती हैं कि उसे दुश्मन के साथ कोई समझौता कर लेना चाहिए। (hi) |